सजा का हुआ ऐलान अपनों की आंखों से छलके आंसू ।
अजित कुमार शेखर की रिपोर्ट
करपी क्षेत्र में बहुचर्चित केयाल काला आहर नरसंहार का फैसला बुधवार को न्यायालय के द्वारा सुना दिया गया। इस मामले में 14 लोगों को सजा दी गई है जबकि सबूतों के अभाव में 6 लोगों को बरी कर दिया गया है। इस नरसंहार के बाद इसके अभियुक्तों को सजा दिलवाने के लिए जिन लोगों के नाम इस केस में गवाह के रूप में दिए गए थे उन्होंने अपनी गवाही दी। जिन लोगों ने अपने परिवार जनों को इस नरसंहार में खो दिए आज उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उस दिन की याद आ गई जिस दिन नरसंहार की घटना हुई थी। इस नरसंहार में जख्मी बचे प्रमोद उर्फ नागा पैर में गोली लगने से पूरी तरह दिव्यांग हो चुके हैं। इन्होंने इस सजा का स्वागत किया लेकिन सजा के बिंदु पर उन्होंने बताया कि जिस प्रकार के जघन्य हत्याकांड की गई थी इस मामले में फांसी की सजा की आशा थी। जय किशोर उर्फ भोला शर्मा, प्रेम नार्थ उर्फ रिंकू समेत अन्य प्रत्यक्षदर्शियों ने उस घटना को याद कर बताया कि आषाढी गांव के लोगों के द्वारा इस आहार पर बने बांध को काट दिया जाता था जिससे गांव के लोगों को कृषि कार्य करने में काफी परेशानी होती थी। इसकी निगरानी के लिए गांव में कमेटी का गठन किया गया था और प्रतिदिन रोस्टर के अनुसार गांव के लोग ड्यूटी किया करते थे। बांध पर एक मडई का निर्माण किया गया था जो दोनों तरफ से खुला हुआ था। इसी में बैठकर लोगों के द्वारा पहरा दिया जाता था। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि इस रास्ते से प्रतिबंधित संगठनों के हथियारबंद लोग जाते थे लेकिन पहरा देने वाले लोगों से बात नहीं करते थे। 8 अगस्त 1996 कि उस काली रात को भी हथियार से लैस प्रतिबंधित संगठनों का दल पहुंचा और झोपड़ी को दोनों ओर से घेर लिया गया ।जब निगरानी कर रहे लोगों ने पूछा कि कौन है आप लोग तो बताया गया कि हम लोग पार्टी के लोग हैं । घेराबंदी करने के बाद लाठी-डंडे से बेरहमी से पिटाई शुरू हो गई। इस क्रम में भरत सिंह, मंगल सिंह, रामनिवास सिंह तथा नवल सिंह को गोली मारकर हत्या कर दी गई जबकि प्रमोद उर्फ नागा को पैर में गोली लगी। जिसकी चिकित्सा पटना में करवाई गई। लंबी चिकित्सा के बाद इनकी जान तो बच गई लेकिन इनका पैर पूरी तरह सूख गया। जब भी इनकी इच्छा खड़ा होकर चलने की होती है तो अपनी पैर को देखकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस स्थिति में लाने वाले लोगों को न्यायालय कड़ी से कड़ी सजा सुनाए। न्यायालय का फैसला आने के बाद इनके बेजान पैर में भी जान आ गई है। फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मेरी जिंदगी को नर्क बनाने वाले दोषियों को आजीवन कारावास की सजा मिली है ।लेकिन यदि फांसी की सजा मिलती तो और संतोष होता। मृतक भरत सिंह के पुत्र संजीत सिंह तथा नीरज कुमार ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।
