त्योहारों में मिट्टी से बने दीपक का महत्व आज भी कायम
करपी से अरविंद कुमार की रिपोर्ट
करपी (अरवल) अनादि काल से सनातन धर्म के अंदर जितने भी पर्व त्योहार मनाए जाते हैं उसमें मिट्टी से बने हुए सामानों का विशेष महत्व है ।दीपावली में मिट्टी से बने दिपक से दीपोत्सव का एक अलग महत्व है। इसी तरह से अन्य पर्व त्योहारों में भी मिट्टी के बने हुए दिपक एंव अन्य सामानों इत्यादि सामग्री का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है । एक दशक से आधुनिकता की युग में मिट्टी के बने हुए दिपक या अन्य सामानों को प्रभाव कम देखा जा रहा हैं। जिसका असर पर्यावरण के साथ-साथ समाज का एक तबका जिसका रोजगार मिट्टी से बने हुए सामानों को बेचकर ही होता है, आज के इस से वर्तमान फैशन के युग में उनकी रोजगार लगभग समाप्त होने की स्थिति बनी हुई है । मिट्टी के बने हुए बर्तनों में अध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिकता की झलक भी देखने को मिलती है। वर्तमान समय में दीपावली में लोग मोमबत्ती या बिजली से बने हुए छोटे-छोटे चाइनीज बल्ब का प्रयोग कर दिये की भरपाई करना चाह रहे हैं लेकिन फैशन के युग में भी मिट्टी से बने हुए दिपक की महत्ता आज भी कायम है। मिट्टी से बने सामान की खरीददारी पर कुम्हार समुदाय के लोगो का कहना है कि आज के आर्थिक युग में लोग जिस तरह से इन सामान से दूरी बनाने जा रहे है उससे तो यही लगता है कि आने वाले दिन में पौराणिक काल से चला आ रहा यह रोजगार समाप्त न हो जाए। कुम्हार जाति से ही संबंध रखने वाले एक युवा ने बताया कि आये दिन सोशल मिडिया के माध्यम से स्वदेशी सामानों की खरीददारी को लेकर युवाओं द्वारा मुहिम चलाया जाता है जिसका हल्का फुल्का असर पर्व के दिनो में बाजारो में देखने को मिलता है और लोग मिट्टी से बने दीपक घङे गुल्लक आदि सामान की खरीददारी बङे ही चाव से करते है।
